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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 23 


जयंती को इस संसार से गये हुए कई वर्ष हो गये । देवयानी लगभग 14 - 15 वर्ष की हो गई थी । वह अब एक बालिका से तरुणी बन गई थी । वह तन से ही नहीं अपितु मन से भी बड़ी हो रही थी । यौवन की कोंपलें फूटने लगी थी । उसकी आंखें बड़ी , गहरी और मदभरी होने लगी थीं । केश घने काले और घुंघराले थे । जब वह स्नान कर आती तो उनमें से टपकती हुई पानी की बूंदें संताप जताया करती थीं कि वे देवयानी के सुन्दर बदन को छोड़कर जा रही हैं । कहां तो गौर वर्ण पर चिपकी हुई जल की बूंद और कहां धूल में मिली हुई वही बूंद । देवयानी के सुडौल बदन को छोड़कर धूल फांकने कौन जाएगा ? लेकिन बूंदें भी उसके बदन के उतार चढाव से भलीभांति परिचित हो गई थीं । जल की बूंदें इतनी ढीठ हो गई थीं कि वे चढाव पर जाकर उन्मत्त हाथी की तरह क्रीड़ा करने लगती थीं । ऊंचाई पाकर कौन गौरवान्वित नहीं होता है ? ऊंचाई पर पहुंच कर प्रत्येक इंसान अत्यन्त प्रसन्न होता है । इंसान ऊंचा और ऊंचा चढना चाहता है । इतना ऊंचा कि आसमान उसके कदमों में आ जाये । इसी प्रकार जल की बूंदें भी देवयानी के शरीर की ऊंचाइयों पर चढकर उसी तरह आनंदित होती थीं जैसे उन्हें स्वर्ग से भी बढकर और कोई स्थान मिल गया हो । कुछ बूंदें तो डरकर उसकी नाभि में छुप जाती थीं जैसे कोई छोटी बच्ची किसी राक्षस को देखकर अपनी मां के आंचल में छुप जाया करती है । जो बूंदें उसके गालों के डिम्पल को छू लेती थी वे अपने भाग्य पर इठलाते थीं । देवयानी के गालों के डिम्पलों को छूने का दुस्साहस जल की बिंदुओं के अतिरिक्त और कौन कर सकता था ? 

शर्मिष्ठा भी कुछ कम नहीं थी । सुन्दर चेहरा । गोल मटोल । गोरे गोरे गाल उस पर सुंतवां नाक । विशाल काले नयन जैसे दो महासागर अगल बगल में एक साथ बैठे हों । शर्मिष्ठा यद्यपि देवयानी से एक वर्ष छोटी थी किन्तु उसका बदन भरा हुआ था इसलिए वह देवयानी से अधिक हृष्ट-पुष्ट थी । ऋषि पुत्री और राजकुमारी में इतना अंतर होना तो स्वाभाविक ही था । शर्मिष्ठा एक लदे फदे वृक्ष की तरह भरी भरी सी लगती थी । 

देवयानी और शर्मिष्ठा की कई सहेलियां बन गई थीं । सब सहेलियां हम उम्र थीं । रुचिका, सुमंगला, सुहासिनी, वृन्दा आदि सभी सखियां कभी जल क्रीड़ा करतीं , कभी गुड्डे गुड़ियों का खेल खेलती तो कभी कुछ और खेल खेलती थीं । सब सहेलियों के पास एक एक गुड़िया थी । वे रोज अपनी अपनी गुड़ियाओं के साथ खेलती थीं । गुडिया की चोटी बनाना , उसके वस्त्र बदलना , उसे खाना खिलाना आदि अनेक कार्य होते थे जिनमें समस्त सहेलियां सदैव व्यस्त रहती थीं । वे एक दूसरे की गुड़ियाओं को देखकर बातें भी बनाती थीं "तेरी गुड़िया तो एकदम चुडैल है चुडैल" । कोई कहती "तेरी गुड़िया तो बिल्कुल निर्लज्ज है । वह पहले भी कई गुड्डों के संग भाग चुकी है । जरा बांधकर रखना नहीं तो फिर भाग जाएगी" । इस बात पर सारी सहेलियां हंस पड़ती 

सुमंगला उन सबमें थोड़ी बड़ी थी । वह सोलह बसंत देख चुकी थी । सुमंगला अब खिलकर कली से पुष्प बन चुकी थी और वह सबका मार्ग दर्शन भी करती थी । शरीर में हो रहे परिवर्तनों के बारे में भी वही बताया करती थी । कुल मिलाकर सुमंगला सबकी न केवल सखि थी अपितु वह बड़ी बहन की तरह पथ प्रदर्शक भी थी । जब भी वह इन सबका गुड्डे गुड़ियों का खेल देखती तब वह कहती "तुम लोग तन से तो बड़ी हो गई हो लेकिन मन से अभी भी छोटी बच्ची ही बनी हुई हो । अब तुम लोगों की उम्र गुड्डे गुड़ियों के साथ खेलने की नहीं है बल्कि अब तो अपने लिए एक अच्छा सा "गुड्डा" ढूंढने की है । अपना अपना गुड्डा ढूंढ लो और उसके साथ प्रेम की बीन बजा लो ।  उसकी बातें बाकी लड़कियां कम ही समझती थीं क्योंकि अभी  सब युवतियां "गुड्डों" से अनजान ही बनी हुई थीं । अभी किसी की जिंदगी में हाड़ मांस का कोई गुड्डा नहीं आया था । 

देवयानी की गुड़िया वल्कल वस्त्र पहने हुए थी । उसके तन मन से सादगी की सुगंध आती थी । सौन्दर्य में उसके समक्ष अन्य कोई गुड़िया टिक ही नहीं पाती थी । उसके चेहरे पर सौन्दर्य के अभिमान का तेज था । उच्च कुल की कांति थी और उसे अपने पिता की अथाह शक्ति का गर्व था । इन सब कारणों से देवयानी की गुड़िया ने "सर्वश्रेष्ठ गुड़िया" की प्रतियोगिता जीत ली थी । इस कारण देवयानी का उत्साह सातवें आसमान पर था । 

शर्मिष्ठा की गुड़िया शर्मिष्ठा की तरह सुडौल और भरी भरी थी । उसका गदराया बदन सबको आकर्षित करता था । शर्मिष्ठा की गुड़िया के अंग प्रत्यंग से यौवन रस टपकता था । एक बार नजरें जिस अंग पर जम जाती थीं, वहां से हटने का नाम ही नहीं लेती थीं । बेचारी शर्मिष्ठा को अपनी गुड़िया लोगों की बुरी नजर से बचाने के लिए पर्दे में रखनी पड़ती थी । उसके सौन्दर्य के चर्चे दूर दूर तक विख्यात थे । सारे गुड्डे देवयानी और शर्मिष्ठा की गुड़याओं  के आगे पीछे ही घूमते रहते थे मगर ये दोनों गुड़िया उन्हें कोई भाव नहीं देती थी । 

एक दिन सुमंगला अपने साथ एक नया गुड्डा लेकर आई । उसका यह नया गुड्डा एकदम राजकुमार जैसा लगता था । कितना सुंदर, कितना वीर और कितना शालीन लगता था वह । एक नजर जो भी उसे देख ले, बस उसी का हो जाए , ऐसा व्यक्तित्व था उसका । सभी सहेलियों की गुड़ियाऐं उस गुड्डे को देखकर उस पर मोहित हो गई । एक दो गुड़िया तो मूर्छित भी हो गई । गुड़ियाओं की ऐसी हालत देखकर सुमंगला को बड़ा सुकून मिला । उसके पास एक ऐसी चीज थी जो अन्य किसी के पास नही थी । सारी लड़कियां उसके गुड्डे से अपनी गुड़िया का विवाह करने के लिए उसकी चिरौरी करतीं पर सुमंगला किसी को भाव ही नहीं देती थी । 

शर्मिष्ठा को वह गुड्डा भा गया था । उसने सुमंगला से कहा "देख सुमंगला , तेरा गुड्डा एक राजकुमार है और मेरी गुड़िया एक राजकुमारी है । देख, दोनों की जोड़ी कितनी सुंदर लग रही है । लग रही है ना" ? 

सुमंगला ने अपना गुड्डा और शर्मिष्ठा की गुड़िया को एक साथ पलंग पर बैठा दिया । वास्तव में दोनों की जोड़ी बहुत सुन्दर लग रही थी जैसे रति और कामदेव की जोड़ी हो । सुमंगला बोली "राजकुमारी जी, आप सही कह रही हैं । इन दोनों की जोड़ी अद्भुत है । ऐसा लग रहा है कि जैसे दोनों बने ही एक दूजे के लिए हैं । चलो, आज इन दोनों का विवाह करा देते हैं । दोनों मन ही मन एक दूसरे को चाहते भी हैं । ठीक है राजकुमारी जी, आप अपनी गुड़िया के विवाह की तैयारी करो । उसके लिए डोली , मण्डप सब सजाने होंगे । मैं भी अपने गुड्डे की शाही पोशाक तैयार करवाती हूं । फिर किसी दिन शुभ मुहूर्त देखकर इनका विवाह संपन्न कर देंगे । क्यों ठीक है ना" ? सुमंगला ने शर्मिष्ठा से सहमति जताते हुए कहा 
"किसका विवाह किससे करा रही हो सुमंगले" ? देवयानी ने अंदर आते ही पूछा 
"मेरे गुड्डे के साथ राजकुमारी जी की गुड़िया का । दोनों की जोड़ी बहुत सुंदर है । देवयानी जी, आप भी इस विवाह में सम्मिलित होना । पर ये तो बताओ कि आप वर पक्ष की ओर से होंगी या वधू पक्ष की ओर से" ? सुमंगला ने हंसते हुए कहा 
"ना वर पक्ष से और ना वधू पक्ष से" । देवयानी के अधरों पर एक अर्थ भरी मुस्कान थी । 
"फिर" ? 
"मेरी तो गुड़िया इस राजकुमार की वधू बनेगी । वही इसके योग्य है और कोई नहीं" देवयानी दृढता से बोली 
"नहीं नहीं आचार्य पुत्री । हम दोनों ने निर्णय कर लिया है इसलिए यह विवाह रामकुमारी जी की गुड़िया के साथ ही संपन्न होगा । आपकी गुड़िया पुरोहित बन जाएगी" । सुमंगला ने अपना निर्णय सुना दिया । 
"तुम लोग होती कौन हो निर्णय करने वाली ? जब तक गुरू की सम्मति नहीं है तब तक ऐसे निर्णय बाध्यकारी नहीं हैं । मेरी गुड़िया से सुंदर और कोई तीनों लोकों में नहीं है इसलिए तुम्हारे गुड्डे राजकुमार का विवाह मेरी गुड़िया के साथ ही होगा । तुम मानो या ना मानो । यदि मेरी बात नहीं मानी तो मैं अपने पिता से कहकर मनवा लूंगी । मेरे तात् मेरी प्रसन्नता के लिए कुछ भी कर सकते हैं । इसलिए भली भांति सोच समझकर विवाह करना" । देवयानी ने कहा । 

गुड्डे गुड़ियों के विवाह के नाम पर कलह प्रारंभ हो गई । सारी सहेलियां शर्मिष्ठा की ओर और देवयानी अकेली । अकेली देवयानी ने उन सबसे गजब का लोहा लिया । तर्क, वितर्क, कुतर्क सबका प्रयोग किया देवयानी ने । अपनी बात कैसे मनवाई जाती है, यह देवयानी से सीखना चाहिए । सारी सहेलियों ने देवयानी के समक्ष अस्त्र डाल दिए । शर्मिष्ठा की तो रुलाई फूट पड़ी । वह फूट फूटकर रोने लगी । शर्मिष्ठा की दशा देखकर और सभी सहेलियों के समझाने पर आखिर देवयानी का हृदय विचलित हुआ और उसने शर्मिष्ठा को कहा "वैसे तो तेरी गुडिया बहुत मोटी है । उससे कौन विवाह करेगा ? ये राजकुमार तो मेरी गुडिया के लिए ही बना है । फिर भी यदि तू इतनी अधिक व्यथित है तो हां, मैं इतनी दया अवश्य कर सकती हूं कि तू अपनी गुड़िया को मेरी गुड़िया की दासी बना दे और राजकुमार के साथ उसे भी भेज दे । यदि स्वीकार हो तो बता , नहीं तो मेरी गुड़िया का विवाह इस गुड्डे के संग हो रहा है" देवयानी ने विजयी मुस्कान बिखेरते हुए कहा । 

कुछ लोग इतने वितण्डावादी होते हैं कि वे येन केन प्रकारेण अपनी बात मनवा ही लेते हैं । ऐसे लोग सदैव अन्य का अधिकार छीनते रहते हैं । इन्हें इस प्रकार अन्य लोगों को प्रताड़ित करने में ही आनंद आता है । वास्तव में ऐसे लोग जोंक की तरह होते हैं जो अन्य का लहू चूस चूसकर जीवित रहते हैं । कुछ लोग इतने सज्जन होते हैं कि वे सही होते हुए भी सदैव गलत ठहराये जाते हैं । लोगों को पहचानना आना चाहिए अन्यथा प्रथम प्रकार के लोग सदैव शोषण करते रहेंगे । 

शर्मिष्ठा को वह गुड्डा इतना भा गया था कि उसने अपनी गुडिया का देवयानी की गुडिया की दासी बनना भी स्वीकर कर लिया । उसने सोचा कि उसकी गुडिया चाहे दासी बनकर ही सही अपने प्रियतम की आंखों के सम्मुख तो रहेगी । अपने प्रियतम को देख देखकर जीवित तो रह सकेगी । शर्मिष्ठा ने देवयानी की शर्त मान ली । सुमंगला के गुड्डे का विवाह देवयानी की गुड़िया से हो गया और शर्मिष्ठा की गुड़िया देवयानी की गुड़िया की दासी बनकर उनके साथ चली गई । 

क्रमश : 
श्री हरि 
16.5.23 


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2 Comments

Natasha

16-May-2023 10:32 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

17-May-2023 05:12 AM

🙏🙏

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